Saturday, June 9, 2007

चोर पुराण

हिन्दी के कवि और यूनीवार्ता के पत्रकार विमल कुमार को रिपोर्टिंग के लिए संसद जाने का मौका मिला तो उनका परिचय नित एक नए पात्र से हुआ .. वो पात्र जो चोर था लेकिन सफेदपोश था ..उसका बोलबाला इतना था कि उसे पकड पाना मुमकिन नहीं ...ये चोर अपनी सत्ता को बचाए रखने में यकीन करना जानते हैं । लेकिन संसद के गलियारों के बाहर उन्हें वे चोर भी मिले तो अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए चोरी करते हैं । ये चोर व्यवस्था की उपज हैं । विमल जी ने इन चोरों की कहानियों के गौर से सुना और सुनने के बाद लिख डाला एक पुराण... चोर पुराण.. जिसमें चोरों की वंदना है , मंगला चरण है , प्रधानमंत्री के साथ उनका संवाद है तो लालू और नीतीश के साथ बातचीत भी ... अपना कोना में हम लाए हैं पुराण की कुछ पाती... ---------- ----------- राजनीति में इमानदारी का नाटक देखकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय वाले दंग रह गए । वे सोचने लगे ऐसा अभिनय तो वो भी नहीं कर पाते हैं । इस्तीफे का नाटक तो पता ही नहीं चल रहा है । लगता है ये सच्ची घटना है । चोर ने एनएसडी को सलाह दी कि वो अपने छात्रों को कुछ दिनों के प्रशिक्षण के लिए राजनीतिज्ञों के पास भेज दें । वहां से लौटने पर वो अभिनय में पक्के हो जाएंगे । पाद टिप्पणी...सुना है एनएसडी ने अपने नाटकों में राजनीतिज्ञों को गेस्ट आर्टिस्ट के तौर पर बुलाना शुरु कर दिया है । -------------- -------------- चोर जब मरे तो सरकार ने उन्हें ताबूत में रखकर दफना दिया । पर वे सारे ताबूत चोरी के थे । पुलिस आई और चोरों को मुर्दा पकड़ कर ले गई .. ------------ ------------ चोरों ने बीजेपी से प्रभावित होकर धर्मग्रंथों की दुहाई देते हुए कहा -- कृष्ण हमारे आदिपुरुष हैं और यही हमारी गौरवशाली परंपरा है क्योंकि वे बचपन में माखन चोर थे । ------------- ------------- सारे चोर इस बात से परेशान थे कि अब भी कुछ लोग क्यों है धरती पर इमानदार इमानदार लोगों के कारण ही उन्हें कहा जाता है चोर इसलिए चोर इमानदारों को भी चोर साबित करने पर तुले हुए हैं .. --------------- --------------- चोर और राष्ट्रपिता.. राजघाट पर कुत्ते घुमाने की घटना से आहत एक चोर ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि जब आप अमेरिका जाएं तो अपने साथ कुछ बंदर और लंगूर भी ले जाए । चोर का यह सुझाव पीएमओ को इतना बुरा लगा कि अगले दिन पुलिस उसके घर आई और पकड कर ले गई.. पाद टिप्पणी.. प्रधानमंत्री के मन में राष्ट्रपिता के लिए सम्मान हो या ना हो..एक चोर के मन में राष्ट्रपिता के लिए काफी सम्मान है । ----------------- -----------------

Monday, April 9, 2007

परलोक से पहले इहलोक

मन मयूर को शांत करने के लिए इंसान ने ना जाने कौन कौन से जतन किए । आस्था के समंदर में गोता लगाया तो धर्मगुरुओं के प्रवचन को ब्रह्मवाक्य मान लिया। लेकिन वक्त के साथ आस्था का स्वरुप भी बदला और गुरुओं की नैतिकता भी । आज हमारे सामने एक से एक मॉडर्न गुरु हैं । हर गुरु का अपना एक अलग फलसफा है । लेकिन क्या वो इंसान के मन को सच्ची शांति दिला पाता है । ये सब कुछ जो दिखता है क्या महज एक छलावा भर है । बता रहे हैं अभिनव सिन्हा।

देवी माता जब भी देगी देगी छप्पर फाड़कर, गाड़ी-नौकर-चाकर देगी देगी छप्पर फाड़कर। आजकल प्रचलित यह भजन धर्म के मौजूदा स्वरूप और ईश्वर के आधुनिक भक्तों की कामना की एक बानगी देता है। आज धर्म की शरण में जाने के कारण बदल गये हैं। आध्यात्मिक शान्ति और निस्वार्थ भक्ति एवं समर्पण का स्थान सांसारिक सुख की लालसा ने ले लिया है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की तरह यहां भी विशुद्ध उपयोगितावाद हावी होता नजर आ रहा है। इस हाथ ले उस हाथ दे के सिद्धान्त से ईश्वर भी बरी नहीं हैं। भक्तजन अपनी भक्ति का तुरन्त प्रतिफल चाहते हैं। कोई इम्तहान में नम्बर पाने के इरादे से मंदिर जाता है तो कोई अच्छा वर पाने के लिए रोज सुबह जल चढ़ाता है। कोई चुनाव में टिकट पाने के लिए दरगाहों में चादर चढ़ाता है तो कोई अपनी नई फिल्म हिट कराने के लिए मत्था टेकता फिरता है। निवेश और मुनाफे के इस दौर में भक्तजन प्राय: अपनी भक्ति का निवेश करते हैं और बदले में कार्यसिद्धि के रूप में अच्छा लाभांश पाने की कामना करते हैं। आज धार्मिकता का एक नया उभार दिखाई देता है। लेकिन इसके पीछे की प्रेरक शक्तियां पहले से अलग हैं। इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि सर्वत्र व्याप्त सामाजिक असुरक्षा की भावना, सामाजिक अलगाव, अकेलापन, बढ़ता उपयोगितावाद और मूल्यहीनता आज लोगों को धर्म की ओर ले जाने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। इसी माहौल में अनेक बाबाओं की धूम है। कोई जीतने की कला बता रहा है कोई मित्र बनाने और सफल होने की तो कोई जीने की कला सिखाने का दावा कर रहा है। एक ओर आसाराम बापू, श्री श्री रविशंकर, ओशो पंथी, सुधांशु महाराज और नागेन्द्र महाराज जैसे संन्यासी हैं, तो दूसरी ओर दीपक चोपड़ा, fशव खेड़ा, नार्मन विंसेंट पील जैसे मैनेजमेण्ट गुरू। पहले यह काम पfश्चम में पादरी और मनोचिकित्सक किया करते थे। अब यह दायरा व्यापक हो चुका है। मैनेजमेंय के लोगों से लेकर संन्यासी और साधु तक यह काम कर रहे हैं। लेकिन मजे की बात तो यह है कि साधु---सन्यासी जीने की कला सिखा रहे हैं। उनका सरोकार तो मनुष्य के इहलौकिक जीवन की बजाय पारलौकिक जीवन से होना चाहिए। लेकिन जनाब ये ऐसे संन्यासी नहीं हैं जो गुफा---कन्दराओं में रहते हों और कन्दूमूल पर जीते हों। ये हाई--टेक और टेक्नोलॉजी सैवी बाबा हैं। ये सेटेलाइट फोन रखते हैं ।ए- सी- कारों और हवाई जहाजों में चलते हैं। फाइव स्टार होटलों में ठहरते हैं। करोड़ों---अरबों रुपयों की सम्पत्ति के मालिक होते हैं। बड़ी संख्या में लोग इन बाबा लोगों की शरण में जा रहे हैं। इनके बीच भी एक किस्म का वर्ग विभाजन है। हर वर्ग के अपने बाबा और पंथ हैं। निम्न वर्ग और निम्न मèयम वर्ग के लोग जय गुरूदेव जैसे पंथों और सुधांशु महाराज जैसे बाबाओं के पास जाते हैं। नवधानाढ्य वर्ग के लोग ओशो, आसाराम बापू और रवि शंकर जैसे संन्यासियों के पास जाते हैं। पढ़ा--लिखा शहरी मध्य वर्ग जो आधुनिक हो गया है, शिव खेड़ा, दीपक चोपड़ा, स्पेंसर जॉनसन और नॉर्मन विंसेंट पील जैसे मैनेजमेण्ट गुरुओं को पढ़कर जिन्दगी में जीत जाना चाहता है। इनमें तमाम किस्म की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में लगे युवा विशेष रुचि लेते हैं। इन बाबाओं और मैनेजमेण्ट गुरुओं के पास हर वर्ग के लोग जा रहे हैं। वे भी जिनका भविष्य अनिश्चित्ता की अंधी गुफा में भटक रहा है और जिनके पास कोई विकल्प नहीं है और वे भी जिनके पास कथित भगवान का दिया सब कुछ है यानी वे खाये----अघाये लोग जिनके पास हर भौतिक सुख---सुविधा है लेकिन जिनका रिक्त कंगाल मानस अध्यात्म के मलहम की मांग करता है। मेहनतकश वर्ग और निम्न मध्य वर्ग में अपनी बदहाली और बेरोजगारी को लेकर गहरी निराशा व्याप्त है। यह निराशा जगह---जगह परिवार सहित आत्महत्याओं और युवाओं द्वारा आतंकवाद का रास्ता पकड़ने के रूप में सामने आ रही है। ऐसे हालात में धर्म और अध्यात्म एक सस्ते इलाज के रूप में भी सामने आते हैं। वे वंचित वर्ग के लोगों को इस लोक में धैर्यवान और विनम्र बनने का पाठ पढ़ाते हैं( और बदले में उनके स्वर्ग जाने का रास्ता साफ! बस कुछ साल और इस नर्क को चुपचाप सह लीजिए! युवा वर्ग को हाई सोसायटी के दर्शन करा दिये जाते हैं, जो उसे मिल नहीं सकती। वह उसके पीछे भागता रहता है और एक दिन निराश हो जाता है। फिर कोई आसाराम बापू या सुधांशु महाराज आते हैं अपने प्रवचन के साथ निराशा से उबारने। अगर कोई इन बाबाओं के प्रवचन का दृश्य देखे तो मार्क्स की वह उक्ति याद हो आती है जिसमें उन्होंने धर्म को अफीम कहा था। हजारों लोग अफीमचियों की तरह बैठकर झूमते रहते हैं। इन बाबाओं के अलावा कई छद्म विज्ञानों को भी खड़ा किया जा रहा है जैसे रेकी,प्रॉनिक हीलिंग, जेनपंथ,ताओपंथ, होलिसिटक मेडिसिन,फेंग शुई वगैरह -- वगैरह। अलगाव के मारे युवा वर्ग को यह भी लुभाता है। इसके अलावा नवधनाढ्य वर्ग जो डंडी मारते---मारते आज गाड़ी, नौकरों, बंगले आदि हर सुविधा से लैस हो गया है वह भी अपने पाप बोध से मुक्ति के लिए इन बाबाओं की शरण में आता है। कुछ बाबा तो दान -- दक्षिणा द्वारा स्वर्ग में सीट आरक्षित करने का सस्ता और टिकाऊ रास्ता बताते हैं। कुछ बाबा और ज्यादा रैडिकल होते हैं। वह बताते हैं कि शिष्य! तुम जिसे पाप समझते हो वह पाप नहीं! वह तो जग की रीत है! ऊंच-नीच तो परमात्मा की लीला है! दुख क्या है -- सुख क्या है सब माया है! इस तरह के प्रवचनों से आत्मा की ठण्डक पाकर सेठ---व्यापारी अपनी-अपनी कारों में वापस चले जाते हैं और फिर जग की रीत का निर्वाह करने लगते हैं। यानी डंडी मारना जारी कर देते हैं। बदले में इन बाबाओं को दे जाते हैं सोना--चांदी या हरे-हरे नोटों की गडि्डयां। इससे अलग शहरी उच्च मध्य वर्ग अपने जीवन के घिसे--पिटे ढर्रे से ऊबकर श्री श्री रविशंकर और ओशो जैसे बाबाओं के पास जाता है। बाबाओं की ये नस्ल इंद्रियभोगवाद को अध्यात्म और धर्म की चाशनी में डुबोकर परोसती है और सेक्स---संबंधी समाजिक वर्जनाओं से इस आधुनिक शहरी उच्च मध्य वर्ग को मुक्त कर देती है। ये बताते हैं कि ईश्वर से साक्षात्कार का रास्ता सेक्स है। ओशो की पुस्तक --संभोग से समाधि तक-- या धर्म के मुंह से कहलवाते हैं। खाओ--पिओ-मौज करो। श्री रवि शंकर ---आर्ट आफ लिविंग वाले संन्यासी भी एक किस्म के पापबोध से इस वर्ग के लोगों को मुक्त कराते हैं। पुराने समाज की नैतिकता को मूर्खता बताते हैं और एकदम दूसरे छोर पर जाकर उन्मुक्तता को जीने की आदर्श कला के रूप में समर्थन करते हैं। इस कला के दर्शन तो सबको हो जाते हैं मगर इस महंगी जीवन शैली में घुस पाना हरेक के बूते नहीं होती।उच्च और उच्च मèयवर्गीय जीवन का घोर सामाजिक अलगाव भी लोगों को इन आधुनिक बाबाओं की शरण में भेजती है। सामाजिक अकेलेपन और मित्रविहीनता के शिकार ये लोग अपने मूल्यबोध में घोर व्यक्तिवाद के कारण किसी भी किस्म की स्वस्थ सामूहिकता को तो पसन्द नहीं करते लेकिन इन बाबाओं के यहां होने वाले कर्मकांडों में उन्मादी भीड़ का हिस्सा बनकर कुछ देर के लिए अपने अकेलेपन से मुक्ति पा जाते हैं। यह अलग बात है कि यह क्षणिक तुष्टि उन्हें बार-बार नशे की खुराक की तरह ऐसे सत्संगों में खींचकर ले आती है जहां पशिचमी संगीत की तेज बीट और रहस्यमय रोशनियों के बीच वे घंटों तक उछल---कूद करते रहते हैं।

Saturday, April 7, 2007

हाय रे बीसीसीआई की बैठक

सचिन तेंदुलकर को बीसीसीआई ने नोटिस थमा दिया और साथ में युवराज को भी । लेकिन द्रविड की कप्तानी बच गई । चैपल को चपत के जगह मिली थपथपी .. वेंकटेश प्रसाद और रॉबिन सिह के साथ साथ रवि शास्त्री को मिला नया एसाइनमेंट.. क्या इसी के लिए बीसीसीआई की बैठक हुई थी । होना था हार का पोस्टमार्टम लेकिन उसके लिए बस एक लाइन काफी था । हम खराब खेले। बस इससे ज्यादा क्या कहना था । उसके लिए न तो कोई जिम्मेदार ठहराया गया और न ही किसी ने पाकिस्तानियों की तरह जिम्मेदारी लेते हुए खुद से इस्तीफा ही दिया । पाकिस्तान को देखिए कप्तान इंजमाम ने आयरलैंड के साथ हारने के तुरंत बाद इस्तीफा दे दिया। पीसीबी के चेयरमैन और सेलेक्टर्स ने भी इस्तीफा दे दिया । लेकिन डालमिया के खिलाफ इतनी मुश्किल से मिली कुर्सी क्या इसी दिन के लिए हासिल की थी पवार साहब ने । भला बताइए टीम खराब खेली तो उनका क्या कसूर .. वो क्यों इस्तीफा दें.. और चैपल की भी क्या गलती थी । वो बेचारे तो ड्रेसिंग रुम से तमाशा देख रहे थे । खराब खेला अगर कोई तो वो था युवराज और तेंदुलकर ..है ना चैपल जी.. असल में गोरी चमड़ी से हम इतने दबे हुए हैं कि उसकी बात से आगे सोच ही नहीं पाते । युवराज और सचिन को लेकर चैपल की नाराजगी जग जाहिर है और दोनो को इसी का खामियाजा भुगतना पडा । दोनो अब नोटिस का जवाब देंगे । और मै आपको पहले ही बता देता हूं सचिन को बांग्लादेश के खिलाफ ड्राप कर दिया जाएगा । आप चाहे तो मुझसे बाजी लगा लीजिए.. सचिन और युवराज ने अगर मीडिया में कोई बयान दिया और वो कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ है दीजिए उनको नोटिस.. लेकिन ये नोटिस उसी दिन क्यों नहीं दिया था । युवराज ने क्या खता कि मुझे तो याद भी नहीं । असल में चैपल के चांटा मारने की जगह आपने उनकी गलत बात को भी सही साबित किया। उन्हें क्यों नहीं नोटिस दिया कि राजन बाला को एसएमएस क्यों भेजा । मीडिया में अपनी रिपोर्ट क्यों लीक की । या कॉरपोरेट फिल्म की बिपाशा बासु उनके जीवन में आई जिसने लैपटॉप से रिपोर्ट चुरा ली । बोर्ड के पास न तो जवाब है और न ही वो हिम्मत दिखा पाएगी चैपल को नोटिस भेजने की । और अगर भेजेगी भी तो चैपल उन्हें दिखाएंगे ठेंगा । इसलिए धर्म के तराजू पर सबको बराबर ट्रीट करने की जगह करवा दी अपने ही खिलाडियों की फजीहत। अरे सेलेक्टर महोदय आप सचिन का नहीं भारतीय क्रिकेट का नुकसान कर रहे हैं । सचिन आज जिस स्तर पर पहुंच चुके हैं वहां उनकी इमेज को खराब करना इन तुच्छ बोर्ड मेंबरों के बस की बात नहीं है । ये नोटिस भेजा गया सचिन को लेकिन इसके आतंक में पूरी टीम होगी । सिवाय द्रविड के । कप्तानी तो कर नहीं पाए। टीम को संभाल नहीं पाए चले लीडर बनने । लेकिन इतने के बाद अगर आपको लगता है कि टीम का भविष्य उज्ज्वल हैं तो जरा ठहर के । बांग्लादेश में हम जीतेंगे और भूल जाएगे कैरिबियन दौरे में हार का गम .. और लौट आएगे पुरान ढर्रे पर .. क्योंकि देश की जनता की तरह अपनी टीम पर लगा है लेबल.. हम नहीं सुधरेंगें।