Friday, March 23, 2007

कुछ खाने का मूड है

क्या आपका जायका सिर्फ कमला नगर में मिलने वाले चाचा के छोले से झकाझक हो जाता है । या फिर आप उडुपी के शौकीन है । गंगा ढाबा गए कभी या नहीं । टेफ्लास नहीं गए तो फिर क्या जे एन यू का मजा लिया । अरे उससे भी ज्यादा तो कॉलेज की कैंटीन में आता था । या इस सब से ज्यादा आपको गर्लफ्रेंड के बनाए परांठे पसंद आते है । हाय हाय कितना इंतजार रहता था । एक दुनिया तो ये है जहां जेब में रोकडे का टोटा रहता है तो ये स्पॉट नजर आते हैं । पॉकेट गरम हुआ तो बरिस्ता , मैकडी , या फिर कॉफी कैफे डे के चक्कर लगने लगे .. भई अपनी भी कुछ इज्जत है कि नहीं । लेकिन अब क्या करें .. अब सब कुछ होते हुए भी इन सब में दिल नहीं लगता अब तो कैंडल लाइट डिनर का टाइम का जमाना आ गया है ... सो पांच सितारा होटलों की दुनिया में आलू बुखारा से लेकर पास्ता ढूंढते फिरते हैं । अरे जनाब, ये तो हसीनाओं के बीच रहने की हसीन दुनिया है .. एक दुनिया वो भी हैं जहां प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी, तृतीयं कालरात्रि .. की तरह दुर्गा की दसों अवतार घर में इंतजार कर रही होती है । थके हारे भूखे आप भले ही घर पहुंचे हों लेकिन महबूबा को देखते ही सारी भूख काफूर हो जाती है । वहां आप खाते नहीं बीबी आपको खाती है । याद है, कब उन्हें लेकर बाहर डिनर पर गए थे आप । चलिए अच्छे बच्चे/पति की तरह जल्दी से तैयार हो जाइए । आज का टिप्स-- खायें वहीं जो महबूबा (शादीशुदा इसे पत्नी माने) मन भाए।

1 comment:

Snigdha said...

Kya baat hai...Good one!!