Monday, March 26, 2007

बाबा की याद में

यूपी में चुनाव का खयाल आते ही नागार्जुन की कविता याद आ गई... श्वेत श्याम रतनार अखियां निहार के, सिंडिकेटी प्रभुओं की पगधूरि झाड़ के दिल्ली से आए हैं कल टिकट मारे के खिले हैं दांत ज्यूं दाने अनार के आए दिन बहार के

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