बाबा की याद में
यूपी में चुनाव का खयाल आते ही नागार्जुन की कविता याद आ गई... श्वेत श्याम रतनार अखियां निहार के, सिंडिकेटी प्रभुओं की पगधूरि झाड़ के दिल्ली से आए हैं कल टिकट मारे के खिले हैं दांत ज्यूं दाने अनार के आए दिन बहार के
हर किसी को चाहिए एक कोना... अपना कोना
यूपी में चुनाव का खयाल आते ही नागार्जुन की कविता याद आ गई... श्वेत श्याम रतनार अखियां निहार के, सिंडिकेटी प्रभुओं की पगधूरि झाड़ के दिल्ली से आए हैं कल टिकट मारे के खिले हैं दांत ज्यूं दाने अनार के आए दिन बहार के
Posted by MIHIR at 3/26/2007 12:22:00 AM
Labels: एक नजर इधर भी
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