Wednesday, March 28, 2007

चश्मा चेक करा लो... प्लीज़

सफलता इंसान की कमजोरियों को छुपा देती है जबकि नाकामी उसकी एक- एक खामी दुनिया के सामने उधेड़ कर रख देती है। टीम इंडिया और खासकर चैपल के साथ आज कुछ ऐसा ही हो रहा है । वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज के कूचे से टीम बेआबरु होकर निकली तो पूरे देश के गुस्सा सातवें आसमान पर था । लोग इस नाकामी को पचा नहीं पा रहे थे । हार हजम नहीं हो रही थी। घर का बेटा अगर बिगड जाए तो बाप की कितनी गलती । उसकी परवरिश को गलती मानी जाए या फिर बेटे की फितरत । खिलाडी हारे तो मैदान में । वहां चैपल तो नहीं थे । न ही छक्के मारते वक्त सचिन का बल्ला गुरु ग्रेग ने पकडा, और न ही युवराज को कैच लेते वक्त उन्होंने लंगडी मारी । वो तो एक कड़क टीचर की तरह अपनी मर्जी से काम करते रहे । सही या गलत जो भी था नजरिया चैपल का था । वो बस अपनी सोच के मुताबिक काम करते रहे । लेकिन गुरुजी अगर बच्चों को बिगाड रहे थे तो घर के बाकी बुजुर्ग यानी बीसीसीआई के अधिकारी क्या कर रहे थे । वो अंडा सेने में व्यस्त थे या अपनी रोटी सेंक रहे थे । चैपल पसंद नहीं थे तो पहले ही उनकी छुट्टी कर देते । चैपल ने आने के साथ ही टीम में की नई प्रयोग किए । बायोमेकेनिस्ट की सेवा ली । साइकोल़ॉजिस्ट को बुलाया । कमांडो ट्रेनिग दिलाई । एक से एक तरह से प्रैक्टिस करवाई । कभी मैकग्रा और एनतिनी की उंचाई पर मशीन को फिट करवा कर बॉल फिंकवाई तो भी फिल्डिंग के लिए अलग अलग नुस्खे अपनाए । लेकिन टीम इंडिया के गधे ऐसे थे कि घोड़े कभी बन ही नहीं सकते थे । आखिर फर्क नस्ल का था । चैपल ने आते ही बताया कि टीम से उपर कुछ भी नहीं । सौरव गांगुली का फॉर्म खराब चल रहा था । सभी चैनल से लेकर देश की जनता उन्हें बिठाने की बात कर ही थी .. वो सब ठीक था । लेकिन एक गोरे ने अपने महाराज को बैठने की सलाह क्या दे दी .बंगाल की खाडी में सुनामी आ गया । ज्योतिषियों ने ग्रहों की पूजा की और फिर जाकर हुआ मंगल मंगल । दादा फिर टीम में आ गए । अब अच्छा खेल रहे है तो चैपल अच्छे खेल के लिए आज उनकी तारीफ भी कर रहे हैं । तो भई सच क्यों कडवी लगती है । अपना देश महान है । यहां जिम्मेदारी को एक कंधे से दूसरे कंधे पर उछालने की रवायत है । खुद कोई अपनी सीना आगे नहीं करना चाहता । इसलिए आज चैपल को विलेन बनाया जा रहा है । बनाना है तो तेंदुलकर को विलेन बनाओ ना । महानता को चोला ओढ रखा है । लेकिन जब जरुरत होती है तो कितनी बार टीम को जिताया है । कभी उनकी पीठ की नस खींच जाती है । कभी टेनिस एल्बो में दर्द उभर आता है । तो कभी ब़ॉल ही इतनी शानदार होती है कि वो पिच को बाय कर देते हैं । श्रीलंका के खिलाफ देखा किस तरह बोल्ड हुए । हाय से वनडे के नम्बर वन प्लेयर । तो जब कोई जिम्मेदारी नही ले रहा है तो चैपल ही क्यों बने बलि का बकरा । हिन्दुस्तानियों के संगत में रहने का असर उनपर भी हो गया । बस कह दिया उनकी मनमाफिक टीम नहीं मिली । ईमेल के बाद एसएमएस का खेल हो गया । पत्रकार खिलाडी हो गए । एक चैनल ने लगाया छक्का तो दूसरे ने चौका । राजन बाला जी अंपायर । सच तो ये हैं कि गलती किसी की नहीं है । गलती खेल की है । खेल है तो जीत भी होगी और हार भी । अपनी दिक्तत बस इतनी है कि ख्वाब टूटते देखता नहीं चाहते । और ख्वाब टूटते हैं कि आखों से खून निकलता शुरु हो जाता है । और उस खून के चलते हर कोई हमें खूनी दिखने लगता है । जबकि असल में कोई खूनी नहीं होता । ये तो बस हमारे देखने का नजरिया है । जो देखना चाहते हैं वहीं देखते हैं । और विलेने की ही तलाश करनी है तो चैपल से बेहतर और कौन मिलेगा .....

6 comments:

Anonymous said...

टीम के खराब प्रदर्शन में न तो गलती किसी एक की होती है और न ही जिम्मेदारी कोई एक ले सकता है... फिर भी एक दूसरे पर उंगली उठाने का सिलसिला कभी नही थमेगा...
ऐसे में शाहरूख खान का बयान खासा दिलचस्प है..उनका तो ये मानना है कि हमारी टीम ने खराब खेला ही नही..वो तो श्रीलंका की टीम ने बहुत अच्छा खेला..देश के यह बात समझनी चाहिए और यही पत्रकारों को भी दिखाना चाहिए..

अब अगर "शाहरूख खान" ऐसा कहते है तो भई मानना ही पडेगा...कोई ज़रा उनसे ये तो पूछे कि बांग्लादेश के साथ हुए मैच के बारे में उनका क्या कहना है ??

प्रियांका

Anonymous said...

टीम इंडिया के खिलाड़ी अब क्या करेंगे? चलिए मैं उनके लिए धंधा तलाशता हूं।
सुनील

Unknown said...

अरे प्रियंका जी ,
आपके सवाल में ही तो आपका जवाब छिपा है । जवाब सिंपल है । अरे भाई बांग्लादेश ने हमसे बेहतर खेला और वो जीत गए । कभी कभी दूसरों को भी आगे बढने का मौका देना चाहिए । आखिरकार बांग्लादेश हमारा पडोसी है , बिल्कुल छोटे भाई की तरह । अगर बडे भाई के तौर पर हम अपना फर्ज निभाते हुए छोटों को आगे बढने का मौका नहीं देगे तो कौन देगा ।

Anonymous said...

haha... सुरेश जी, लगता है हमारे धुरंदर खिलाड़ी आपसे मिलकर और आपकी सोच से प्रभावित होकर ही मैदान में उतरे थे... :)

प्रियांका

Unknown said...

अरे भाई यही तो दुख है , ये लोग न तो मेरी सलाह लेते हैं और न ही मेरी सोच से प्रभावित होते है । अगर ऐसा होता तो ये बरमूडा से भी न जीत पाते ।
सुरेश

Kumar Kaustubha said...

क्या दादागीरी है, सुरेशजी..मान गए..बिग ब्रदर एटीच्यूड यहां भी रहेगा आपका...मान गए प्रभु....