Wednesday, March 21, 2007

पहली पाती

दिल की कई बात दिल में ही रह गई. कोई कोना ना मिला । मिलता तो कुछ दिल का गुबार, कुछ मन का मलाल, कुछ यादगार लम्हे , तो कुछ भूल जाने वाले पल सब सहेज कर वहां रख देता । लेकिन कोना न था । कोने की तलाश में अपनी मंडली के साथ कभी पनवारी की दुकान तो कभी गुप्ता जी का ढाबा , कभी जेएनयू के जंगल तो कभी दिल्ली युनिवर्सिटी कैंपस हर जगह खाक छानता रहा । जगह सभी एक से बढकर एक थे लेकिन कोना न था .. वक्त बीतता गया लम्हा गुजरता गया .. यादो के पन्नें बढते गए और जिंदगी छोटी होती गई .. लेकिन तलाश का अंत न हुआ । अब क्या कहें. जो बीत गई सो बात गई .. अब जो है सो है .. इसलिए तलाश मैने छोड दी और खुद से बनाया एक कोना । एक कोना जहां न कोई बंदिश नहीं है और न ही है कोई पाबंदी .. । तो आपका कोना इंतजार कर रहा है आपका ...

4 comments:

satyendra prasad srivastava said...

तलाश की कोशिश अच्छी है। दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती खुद को तलाशना ही है। जब आप तलाश में निकल ही पड़े हैं तो ऐसा क्यों सोचते हैं कि आप प्रिंट से निकलकर टेलीविजन की दुनिया में कहीं गुम हो गए हैं। मुझे तो लगता है कि प्रिंट से निकल कर आप एक और लंबी तलाश पर निकल गए हैं। इसे खोना नहीं कहते।

Unknown said...

सत्येंद्र जी की बातों में दम तो है । वैसे आपकी तलाश तो काफी लंबी हो रही है । इसे इतना लंबा न खीचें ।

venkatesh said...

तलाश का अंत कोने में क्यों? गरियाने के लिए तो पूरी दुनिया पड़ी है...

venkatesh said...

तलाश का अंत कोने में क्यों? गरियाने के लिए तो पूरी दुनिया पड़ी है...